Thursday 3 September 2015

"धुंधला गयी शक़्ल"



                       
                                     




मन के आंगन में हुई कुछ अजीब हलचल
तेरी आहटों ने छेड़ी है शायद कोई ग़ज़ल

तेरे इन्तजार का शिकवा करें ये अबसार 
बड़े बियावान से हुए गली चौबारे महल 

जिक्र तेरा ख्वाब तेरे है तेरा ही तसब्बुर 
सरगोशियों में लिपटी तनहा रात बेकल 

उस लिखी गयी नज्म में अजाब था इतना 
बहने को ये अश्क खुद खुद गये मचल 

ये माना नसीब पर इख्तियार नहीं अपना 
अब इसकी हर बात पर करते हम अमल 

नादानी पर अपनी बड़ा सकून है "मंजुषा
दुनिया कहती रही हमें थोड़ा कम अकल 

अजीज बड़ा था खुद को निहारते रहना 
आब आइना और धुंधला गयी शक़्ल 


Thursday 30 July 2015

"एक लम्हा कर्ज".. शीर्षक "कहानी"








सुबह के नौ बज रहे थे गौतम का आज फिर यूनिवर्सिटी जाने का मन नहीं था, इसलिए फ़ोन कर के छुट्टी ले ली मगर ऐसा कब तक चलने वाला था,  चेहरे पर एक अजीब ख़ामोशी पसरी थी और पलंग पर लेटे लेटे बड़ी देर से उस पंखे को लगातार देखे जा रहा था, देख तो पंखे को रहा था पर मन कहीं और था | ज़रा सा ध्यान हटा तो पानी पीने के लिए टेबल पर रखी बोतल की तरफ हाथ बढ़ाया परन्तु बोतल रात भर में खाली हो चुकी थी | नजर टेबल की तरफ फिर गयी, एस्ट्रे बुझी हुई सिगरेटों से भर गयी थी कुछ ऐश तो टेबल पर भी गिर गयी थी, वो जानता था उसने पिछली कुछ रातें किस तरह गुजारी है तभी एक तेज आवाज हुई खिड़की के शीशे से किसी चीज़ के टकराने की ,अखबार वाले ने उस कमरे में फैली ख़ामोशी को तोड़ दिया था गौतम अचानक उठ बैठा, टेबल के कोने में रखे अपने चश्मे को पहना और डिब्बी में पड़ी एक आखिरी सिगरेट निकाली और बड़े ही अनमने भाव से उठकर कमरे से सटी बालकनी का दरवाजा खोला | जून के महीने में गर्मी अपने चरम सीमा पर थी तेज धुप में गौतम की आँखें चुंधिया गयी ,अखबार को उठा कर अंदर पलंग की तरफ फैंका और खुद लाइटर से सिगरेट सुलगा ली ,पहला कश भरते ही उसने अपनी बाईं तरफ देखा तो गमले में रखा तुलसी का पौधा पूरी तरह सूख चुका था ,देख कर अचानक उसका मन भर आया आंखें नम हो गयी,इस तुलसी के पौधे को अनुष्का अपने साथ इस घर में लायी थी | एकाएक वही सवाल जो पिछले कुछ दिनों से उसे जीने नहीं दे रहा था, ऐसा कैसे हो सकता है अनुष्का उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है ,एक के बाद एक सवाल तेजी से जहन में आ रहे थे और सिगरेट का धुंआ उन्हीं सवालों को हवा में उड़ा दे रहा था गौतम के पास इन सवालों के जवाब नहीं थे | 

गौतम और अनुष्का एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे, उसे याद है उसने पहली बार जब अनुष्का को देखा था तो वो देखता ही रह गया था जब पहली बार गौतम ने अनुष्का को देखा था तब वो सिर्फ अठारह बरस की थी, वो बारवीं की परीक्षा दे चुकी थी और गौतम सताईस बरस का था यूनिवर्सिटी में कलर्क था हाल ही में उसे ये नौकरी मिली थी, अनुष्का की बुआ और गौतम एक ही विभाग में कार्यरत थे, अनुष्का कभी कभार अपनी बुआ से मिलने यूनिवर्सिटी आती थी बारवीं की परीक्षा देने के बाद वो बुआ के पास ही आ गयी थी | उस दिन भी गौतम अपनी फाइलों में व्यस्त था कि अचानक से एक मीठी दिलकश आवाज उसके कानों में गूंजी "एक्सक्यूज़ मी" गौतम ने सर उठा कर देखा तो हतप्रभ रह गया कुछ ठगा सा, अनायास ही एक सुन्दर चेहरा उसकी आँखों के सामने उभर आया था, धानी चुनर में लिपटी वो कमसिन यौवना ,उसका दूधिया रंग,कजरारी आँखें लम्बे बाल उसके दिल को बहकाने के लिया काफी थे कि बड़ी बड़ी आँखें कर अनुष्का फिर से बोली "एक्सक्यूज़ मी ,अलका जी कहां मिलेगी ?" उस दिन अनुष्का पहली बार बुआ से मिलने यूनिवर्सिटी आई थी, गौतम के मुहं से सिर्फ जी निकला उसका ध्यान सवाल पर केंद्रित नहीं था, वो तो एक टक उस सौंदर्य से परिपूर्ण यौवना को देखे जा रहा था जो एक ताजा हवा के झौंके की भांति उसे अंदर से गुदगुद्दा रही थी , अनुष्का ने फिर अपना सवाल दोहराया मगर इस बार दूसरे ढंग से ,''जी मैं आपसे पूछ रही हूँ अलका जी जो यहां कलर्क हैं वो कहां मिलेगी ?" गौतम को झटका सा लगा झेंपते हुए वो कुछ परेशान अवस्था में अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और अनुष्का के चेहरे से नजर हटा कर इधर उधर देखने लगा और उत्तर दिया "जी अभी बताता हूं " अपनी टेबल से चपड़ासी को जो फाइल इधर उधर दे रहा था अपनी ओर आने का इशारा किया और पूछा ''अलका जी कहां हैं अपनी सीट पर दिखाई नहीं दे रही " बदले में उतर मिला  ''साहब बाहर गयी हैं अभी अभी  केन्टीन की तरफ  जाते हुए देखा कुछ और लोग भी साथ में थे" चपड़ासी ने जवाब दिया, अनुष्का चपड़ासी का जवाब सुन बेसब्र हो गयी और मुहं से   ''ओह्ह" निकला ,  गौतम फिर अनुष्का को देखने लगा इस बार वो उसे कुछ परेशान लगी और वो परेशानी उसके चेहरे के नूर को कुछ फीका कर रही थी , गौतम ने अनुष्का को सहज करने के लिए इतना ही कहा "आप बैठिये प्लीज़ वो कुछ ही देर में आ जाएंगी" अनुष्का कुछ न कहते हुए हलकी फीकी सी मुस्कान भरते हुए पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी | गौतम ने फिर से अपनी फाइलों की और रुख किया मगर अब दिल काम में कहां लगने वाला था, दिल में तो अजीब सी हलचल हो रही थी ,जो पहले कभी नहीं हुई और ये पल उसे जिंदगी के सबसे हसीन पल लग रहे थे जैसे कोई सुनहरा ख्वाब हकीकत का रूप ले रहा हो | पैन उँगलियों के बीच जरूर था मगर लिखने की कोशिश भी नाकाम लग रही थी, इस बार उसने चोरी से अनुष्का को देखा और डर भी रहा था कहीं वो उसे इस तरह देखते हुए देख न ले, वो बला की सुन्दर थी बेहद आकर्षक कि जैसे ईश्वर ने उसे बनाते वक्त भूल से भी कोई भूल न की हो | 
अनुष्का कुछ परेशान होकर कभी इधर कभी उधर तो कभी फर्श को देख रही थी, गौतम को कुछ अच्छा नहीं लगा उसने पूछा  "क्या आप पानी लेंगी" अनुष्का ने नजरें उठाये बिना जवाब दिया "नहीं शुक्रिया" इस बार गौतम ने अपने काम को किनारे रख उससे बात करने की कोशिश की एक विश्वास भरे अंदाज में पूछा "अलका जी आपकी क्या लगती हैं?" अपने सवाल को फिर से दोहराया "मेरा मतलब है कि आपकी रिश्तेदार हैं या.."  तभी अनुष्का ने जवाब दिया "जी वो मेरी बुआ हैं" इस बार गौतम सिर्फ जी कह कर मुस्कुराया, आगे की बात करने के लिए कोई सिरा नहीं मिल रहा था, गौतम जानता था की वो अब उस कमसिन यौवना से उसका नाम पूछना चाहता है मगर कैसे ? अगर गलती से भी बुरा मान गयी तो ये बहुत ही बुरा होगा खासकर उसके दिल के साथ, ये सोचकर उसने चुपी साध ली | फाइलों का ढेर एक बार फिर से आगे कर दिया और अपने व्यस्त होने का नाटक करने लगा ,अनुष्का भी उसकी पहली नजर को पहचान गयी थी मगर जान कर अनजान बन गयी | करीब पंद्रह मिनट गुजर गए यूँ ही चुपचाप बैठे दोनों को, अचानक एक हाथ अनुष्का के कंधे पर आ लगा और आवाज आई "अनु तू", ये आवाज अनुष्का की बुआ की थी ,अनुष्का अचानक से खड़ी हुई "ओह्ह बुआ तुम भी न.. पता है कितनी देर हो गयी तुम्हारा इन्तजार करते करते, कहां चली गयी थी ? |" अलका हंस पड़ी और कहने लगी "अरे यहीं थी बाहर, मुझे क्या पता तू आज यूनिवर्सिटी आएगी सुबह को तूने कुछ कहा नहीं जब मैं घर से निकली, चल उधर आ जा" और अनुष्का को अपनी सीट की तरफ आने का इशारा किया |  फिर अचानक से अलका पलटी जैसे अपनी भूल का एहसास हुआ हो और गौतम की तरफ देख कर कहा  "गौतम जी ये मेरी भांजी अनुष्का है और अनुष्का ये गौतम बाबू हैं नए नए यहां आये हैं, गौतम बाबू आज आपने लंच नहीं किया क्या " गौतम अचानक किये इस सवाल से कुछ हड़बड़ा गया फिर सहज होकर मुस्कुराया और अनुष्का की तरफ हेलो कहा और सवाल के जवाब में बस इतना कहा "जी नहीं, जी अभी कर लूंगा" अनुष्का को गौतम की इस हालत पर हसीं आ गयी मगर हसीं नहीं हल्का सा मुस्कराई और अपनी बुआ के पीछे चल दी |
गौतम को उसकी मुस्कराहट ने अब होश में न रखा था उसके चेहरे पर अकस्मात् एक शर्मीलापन उभर आया जिसे गौतम ने छुपाने का भरसक प्रयास किया मगर कामयाब न हो सका मगर उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया था जिसके लिए वो बेसब्र था, मन ही मन सोचा अनुष्का, तो मैडम का नाम अनुष्का है, उसके फिर एक हलकी सी नजर अलका जी की सीट की तरफ डाली तो पाया बुआ भांजी बातों में व्यस्त हो चुकी हैं ,अनुष्का दूर से भी उतनी ही खूबसूरत लग रही ही जितनी की पास से | भूख जोरों की लग रही थी इसलिए सारा काम एक तरफ़ा समेट कर अब गौतम ने लंच के लिए केन्टीन जाने का रुख किया | गौतम पर एक नया खुमार सा चढ़ा हुआ था वो समझ नहीं पा रहा था ये महज आकर्षण भर है या पहली नजर में होने वाला प्यार ,लंच करते वक्त भी यहीं सोचता रहा और मन ही मन हर्षित हो रहा था आखिर जो जिंदगी में आज तक न हुआ वो हो ही गया ,हो न हो यक़ीनन अनुष्का भी इस बात को जान चुकी है सोचकर मंद मंद मुस्करा दिया | जब तक गौतम वापिस अपने कार्य स्थान पर पहुंचा तब तक अनुष्का जा चुकी थी ,खाली कुर्सी देखते ही मन बोझिल हो गया और मन मसोसते हुए अपने जगह बैठ गया | इस पहली मुलाकात ने गौतम और अनुष्का के प्यार की नीवं रख दी थी | 
सिगरेट पूरी तरह बुझ चुकी थी और अतीत का वो सुनहरा पन्ना धुआं बन के हवा में उड़ गया था, गौतम एक लम्बी सांस भरते हुए वापिस कमरे में आ कर टांगे लटका कर पलंग पर बैठ गया |अख़बार को खोला मगर पढ़ने का मन नहीं किया फिर एक तरफ फैंक दिया आधे मन से रसोई की तरफ गया एक नजर डालने पर ऐसा लग रहा था की बरसों से यहां खाना नहीं बना है रसोई घर, रसोई घर न हो कर एक स्टोर बन गया था ,सारा सामान बिखरा पड़ा था कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं थी  उसे याद आ रहा था कि खाना बनाते वक्त अनुष्का हमेशा कोई ना कोई गीत गुनगुनाया करती थी जो कि गौतम को बेहद पसंद था,  फिर अचानक... फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और वापिस कमरे में आ गया | गौतम सोचने लगा एक लम्हे में अचानक सब कुछ कैसे बदल जाता है हमारी जिंदगी पर एक एक लम्हे का कर्ज रह जाता है |     
वो लम्हा कितना खास था, उसका कर्ज वो कभी भूल भी नहीं पायेगा जब गौतम के लिए अनुष्का उसकी जिंदगी बन कर उसकी दुनिया में हमेशा के लिए आ गयी थी, ऐसा लगा था कि सारी कायनात ने उसके लिए खुशियां समेट दी और दामन में भर दी हों ,अपने प्यार को पाना मतलब, जिंदगी को पाना था गौतम के लिए | गौतम ओर अनुष्का के इस सच्चे प्यार को उसकी बुआ ने हरी झंडी दे दी थी हालांकि अलका  नहीं चाहती थी की अनुष्का अभी शादी करे क्यों कि वो बहुत छोटी भी थी और पढ़ने में अच्छी भी थी, लेकिन गौतम के प्यार के आगे उसकी एक ना चली | गौतम एक सुलझा हुआ इंसान था बेहद नेक प्रवृति का ,शायद वो अनुष्का के लिए उपयुक्त भी था अगर वो अनुष्का को प्यार करता है तो उसे हर हाल में खुश भी रखेगा यही सोच कर अलका ने विवाह के लिए हामी भर दी थी | अनुष्का की मां की कुछ साल पहले बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी थी जिसके कारण ये जिम्मेवारी अनुष्का के पिता ने अलका के कन्धों पर डाल दी थी | अलका अविवाहित थी इसलिए अनुष्का को अपनी  बच्ची समझ कर प्यार करती थी और दोनों बुआ भांजी न हो कर अच्छी सहेलियां भी थी |
दोनों का प्रेम विवाह था इसलिए गौतम अनुष्का बेहद खुश भी थे ,दोनों प्यार में इसकदर डूबे रहते कि साल कब बीत गया पता न चला | गौतम ने धीरे धीरे ये भी नोटिस किया कि अनुष्का को किताबें पढ़ने का बेहद शौक है उसने अनुष्का को खाली वक्त में हमेशा उस टेबल के इर्द गिर्द पाया जहां गौतम अक्सर कुछ न कुछ पढ़ने बैठता था | एक दिन गौतम से रहा नहीं गया और कहा "अनु तुम अपनी आगे की पढाई क्यों नहीं कर लेती" बात को बदल कर फिर ज़रा जोर दिया और कहा "मेरा मतलब है तुम्हें किताबें पढ़ने का शौक है और वैसे भी यही समय होता है पढ़ने का, तुम ग्रेजुएशन कर लो |"गौतम की बात सुन कर खुश तो हुई मगर थोड़े हैरानी भरे अंदाज में अनुष्का ने गौतम की तरफ देखा और कहा "अब अब तो शादी भी हो गयी क्या करूंगी आगे पढ़ कर और हंसते हंसते कहने लगी तुम नहा लो में नाश्ता बनाती हूँ " और रसोई में चली गयी | मगर गौतम के  मन में कुछ और था वो नहीं चाहता था की अनुष्का इस चूल्हे चौके के बीच रह कर अपनी जिंदगी यूं ही खराब कर दे ,उसे याद है उसने अनुष्का की बुआ को कहा था कि अनुष्का आगे अपनी पढ़ाई पूरी करेगी वो उसमें अनुष्का की पूरी सहायता करेगा | "अरे पढाई का शादी से क्या लेना देना, पढाई अपनी जगह है तुम भी आगे बढ़ो दुनिया को देखो " कह कर अपना तालिया उठा कर नहाने चला गया  | आखिर गौतम जब रोज रोज यही दोहराने लगा तो थक हार कर अनुष्का ने गौतम की बात मान ली और बी.ए फर्स्ट ईयर में एड्मिशन ले लिया  |
क्या यही एक भूल हो गयी थी उस से ,गौतम फिर से उस लटकते घूमते पंखे को देख रहा था और सोच रहा था ,उसने तो वहीं किया जो की किसी भी अच्छे इंसान को और अच्छे पति को करना चाहिए था तभी दरवाजे की घंटी बजी ,मन नहीं था खोलने का सो थोड़ी देर वैसे ही लेटा रहा, घंटी फिर बज उठी इस बार दो बार बजी, दरवाजा खोला "नट्टू तू" करीब एक ग्यारह  का बच्चा हाथ में चाय लिए खड़ा था कहने लगा "ओह्ह क्या भैया इतनी देर से घंटी दे रहा हूँ अपनी चाय ले लो " चाय लेकर गौतम वापिस कमरे में आया और पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया जो किताबों के टेबल के पास थी जिस पर वो सुबह होते ही वो बैठ जाया करता था और जहां अनुष्का और गौतम साथ साथ चाय की चुस्कियां भरते हुए अपनी सुबह को तरोताजा करते थे | कितना खूबसूरत मंजर होता था और कितना अजीब है अब सब कुछ, चाय की पहली चुस्की भरते सोचने लगा कहां तो अनुष्का बाहर खाना खाने के लिए भी मना करती थी हमेशा कहती थी घर का बना खाना खाने से अच्छा कुछ भी नहीं और अब तो.. एक लम्बी आह भरी जैसे गौतम का अंदर का हर दर्द अपने आप को सिर्फ आहों में ही बयां कर रहा हो | 
    अनुष्का पढ़ने में बहुत तेज थी इस बात में गौतम कोई शक नहीं था वो अनुष्का के इस बात से बेहद प्रभावित भी था, उसका मनपसंद सब्जेक्ट जियोग्राफी था , धीरे धीरे दोनों की दिनचर्या 
फिक्स हो गयी गौतम यूनिवर्सिटी जाता और अनुष्का कॉलेज | गौतम ने परीक्षा के दिनों में अनुष्का की पूरी मदद की और समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ,अनुष्का ने ग्रेजुएशन फर्स्ट डिवीज़न से पास किया और गौतम के कहने पर जियोग्राफी में एम.ए करने का निश्चय किया, अपना मन पसंद विषय पाकर अनुष्का फूली न समायी  | अब कुछ दिनों के लिए वो बुआ के घर जाना चाहती थी बहुत जिद्द करने पर गौतम ने उसे बुआ के यहां छोड़ दिया ,अलका भी अनुष्का को देख कर बेहद खुश थी आखिर बुआ का उसके सिवा अपना था ही कौन ? अलका ने पाया कि अनुष्का बहुत ज्यादा खुश है और चहक भी रही है ये बात तो अच्छी थी मगर एक चिंता ने अलका के मन को घेर लिया , उसकी रूचि गौतम से ज्यादा अब कॉलेज जाने में थी, अनुष्का कॉलेज की सारी बातें अलका को बताती अपनी सहेलियों के बारे में दोस्तों के बारे में | उसने अलका को अपनी एक खास दोस्त नेहा के बारे में बताया कि कैसे वो अपनी गाड़ी लेकर कॉलेज आती है ,और कहने लगी 
"बुआ वो बहुत अमीर घर से है उसके घर में सारे के सारे लोग बड़ी बड़ी पोस्ट पर हैं"  अलका ने उसकी सब बहुत ध्यान से सब बातें सुनी वो अनुष्का को लेकर एक बात समझ रही थी उसकी उम्र के हिसाब से वो अपनी जगह ठीक है मगर कुछ पाने का सपना अभी भी वो आंखों में लिए घूम रही है क्या था वो सपना ? क्या वो सपना अनुष्का और गौतम दोनों का है या सिर्फ और सिर्फ अनुष्का का ? इन सवालों से अलका सिहर उठी वो ये भली प्रकार जानती थी कि गौतम उस से बेहद प्यार करता है इसी लिए अनुष्का की ख़ुशी में वो अपनी ख़ुशी ढूंढता है ,इसलिए वो अनुष्का की हर बात मान भी लेता है आखिर प्यार यही तो है एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की ख़ुशी में खुश रहना | अलका ने कई बार बातों का रुख मोड़ने की कोशिश की और गौतम के बारे में और आगे परिवार बढ़ने केर बारे में अनुष्का से जानना चाहा मगर अनुष्का हर बार एक फीकी मुस्कराहट देकर बात टाल जाती और हर बार यही कहती  "बुआ तुम भी न, अभी मेरी उम्र ही क्या है, अभी मैं पढ़ना चाहती हूँ कुछ बनना चाहती हूँ और खूब पैसा कमाना चाहती हूँ " पढ़ने वाली बात ठीक थी मगर पैसे वाली बात अलका को चिंता में डालने के लिए काफी थी | कुछ दिन रह कर वो वापिस गौतम के पास लौट आई गौतम बेहद खुश था क्यों कि अनुष्का के बगैर पूरा घर सूना सूना लग रहा था |
साल दर साल फिर बीतते गए और पढाई का सिलसिला आगे चलता रहा ,एम.फिल करने के दौरान अनुष्का को एक प्राइवेट कॉलेज में नौकरी मिल गयी ,अनुष्का के पंखों को तो जैसे नयी  उड़ान मिल गयी थी | बेहद खुश थी अनुष्का इस नौकरी के मिलने से मगर एक छोटी सी परेशानी थी वो ये की उसका कॉलेज दूसरे शहर में था | इस परेशानी का हल भी गौतम ने ही निकाला ,उसने अनुष्का से कहा कि वो वहां जाना चाहे तो जा सकती है अगर नौकरी नहीं भी करना चाहती है तो वो भी ठीक है ,मगर अनुष्का जाना चाहती थी वो हरगिज़ भी इस नौकरी को ठुकराना नहीं चाहती थी, इसलिए जाने का निश्चय किया, मगर अकेले रहने में उसे थोड़ा डर लग रहा था इसलिए गौतम ने ढांढस बंधाया कि वो हर शनिवार उसके पास आ जाया करेगा सप्ताह में दो दिन वो साथ बिताएंगे फिर अनुष्का नौकरी के लिए दूसरे शहर चली गयी | 
यही वो मोड़ था जहां से गौतम और अनुष्का के रास्ते अलग अलग होने शुरू हुए ,एक कहावत भी है कि नजरों से दूर तो दिल से दूर वो यहां चरितार्थ होती दिख रही थी | गौतम तो अपने काम में व्यस्त हो गया मगर अनुष्का के लिए हर बात नयी थी नयी नौकरी, नया कॉलेज नए दोस्त और सबसे ज्यादा उसके नए सपने ,उसका मिलनसार और चंचल स्वभाव सभी को आकर्षित करता था कुछ ही समय में वो कॉलेज की प्रिय लेक्चरर बन गयी | इसी दौरान उसकी दोस्ती मीरा से हुई जो हिंदी की लेक्चरर थी ,दोनों जल्दी ही अच्छी सहेलियां बन गयी मीरा तलाकशुदा थी इसलिए वो भी अकेली ही रहती थी आजाद ख्याल की मीरा ने जैसे अनुष्का का दिल जीत लिया था मीरा अपनी कार से कॉलेज जाती थी , जब से दोनों अच्छी सहेलियां बनी थी दोनों का उठना बैठना आना जाना इकट्ठा था | अभी अनुष्का को आये तीन महीने हो चले थे अचानक से एक दिन उसकी तबियत खराब हुई तो कॉलेज से छुट्टी ले कर घर जल्दी आ गयी ,दो दिन तक अजीब सी तबियत रहने के वाबजूद उसने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला अनुष्का गर्भ से है ,अनुष्का पर तो जैसे कोई बज्रपात हुआ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे वो गौतम को ये बात बताये या नहीं, उसने ये बात मीरा को कही और साथ में ये भी बताया वो अभी माँ नहीं बनना चाहती मीरा ने प्रतिउत्तर में यही कहा कि वो अपने फैसले खुद ले सकती है अगर वो नहीं चाहती तो वो गर्भ गिरा दे, मीरा की गर्भ गिराने वाली बात सुन कार अनुष्का अंदर तक कांप गयी उसने फ़ौरन ये बात गौतम को बताने का निश्चय किया और उसने यही सोचा कि वो गौतम से कुछ नहीं छिपायेगी वो जानती थी गौतम उसकी हर बात मान जाता है इस बार भी वो उसे समझेगा और मान लेगा | उस दिन शनिवार था गौतम करीब तीन बजे तक पहुंच गया अनुष्का की अजीब सी हालत देखकर वो कुछ परेशान हुआ और उसकी हालत का कारण पूछा अनुष्का ने पहले तो यही कहा की तबियत कुछ ठीक नहीं मगर गौतम ने डॉक्टर के पास जाने की बात कहीं तो अनुष्का से रहा नहीं गया और कहा  "गौतम मैं अभी बच्चा नहीं चाहती "और गहरे संतोष भरे भाव से गौतम को देखने लगी पहले तो गौतम कहने का मतलब समझा नहीं जब अनुष्का ने फिर से कहा की वो डॉक्टर के पास गयी थी तो पता चला की वो गर्भ से है मगर वो अभी बच्चा नहीं चाहती | गौतम पहले तो बेहद खुश हुआ मगर जल्दी ही वो अनुष्का कि कहीं गयी बात से कुछ आक्रोश से भर गया मगर फिर भी खुद को सहज करते हुए एक समझदार इंसान की भांति अनुष्का को समझने की कोशिश की और कहा "अनुष्का हमारी शादी को सात साल होने को आ गए अब तो तुम्हारी पढाई भी पूरी हो गयी है अच्छी खासी नौकरी भी है फिर अब तो हम अपने परिवार के बारे में सोच  सकते हैं" मगर अनुष्का गौतम की सारी बातों को अनसुना कर रही थी जैसे उसने फैसला ले लिया हो | रात को खाने के बाद दोनों बालकनी में खड़े हो गए मगर खामोश, इस बार जैसे दोनों को ही एक अजनबीपन का एहसास हो रहा था गौतम नहीं समझ पा रहा था की वो उसे कैसे समझाए न ही अनुष्का ये बात समझ पा रही थी | दोनों जान चुके थे की दूरियां तो आ गयी हैं मगर इन दूरियों का जिम्मेवार कौन है वो  या अनुष्का , मगर गौतम अभी भी अनुष्का को दिलोजान से चाहता था वो चाहता था की अनुष्का वापिस अपने शहर आ जाये लेकिन वो उसे मजबूर नहीं करना चाहता था |

अचानक फिर से घंटी बजी, गौतम की शून्यता टूटी मगर इस बार घंटी फ़ोन की थी ,घंटी लगातार बज रही थी और उसकी गूंज कमरे में पसरी ख़ामोशी और गौतम के दिल में बसी ख़ामोशी दोनों में खलल डाल रही थी , उसने चाय का गिलास टेबल पर रखा और रिसीवर उठाया और भरी आवाज में कहा  "हेलो" दूसरी तरफ आवाज किसी औरत की थी कुछ जानी पहचानी ,दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "हेलो, हेलो, कौन? गौतम, मैं अलका  बोल रही हूँ " थोड़ा विस्मय भरे अंदाज में गौतम ने कहा "अरे बुआ आप, आप कैसी हैं?" अलका की आवाज फिर आई " मैं अच्छी हूँ बहुत दिन हो गए थे तुमसे बात किये आजकल यूनिवर्सिटी भी नहीं आ रहे हो, किसी ने बताया तुमने छुट्टी ले रखी है इसलिए सोचा फ़ोन कर के पूछ लूं कहीं तबियत खराब तो नहीं ?" गौतम हंसने लगा "नहीं बुआ ऐसी कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ " अलका कुछ कहना चाह रही थी मगर हिम्मत नहीं हो रही थी बस इतना ही कहा " गौतम मैं तुम्हें और तुम्हारे हालातों को समझ सकती हूँ बस दुःख तो इस बात का है कि कुछ कर नहीं सकती जो भी हुआ बेहद बुरा हुआ " गौतम कुछ सकते में आ गया वो शायद इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था और आगे कुछ सुनना नहीं चाहता था अलका की बात काट कर बस इतना ही कहा "बुआ जी आप मेरी चिंता न कीजिये अभी कुछ काम है मैं आपसे बाद में बात करता हूँ" और रिसीवर रख दिया | रिसीवर के रखते ही गौतम ज्यादा परेशान हुआ उसने बड़ी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरा और धड़ाम से पलंग पर आ गिरा और फिर वहीं सब बातें सोचने लगा, कैसे ये सब हो गया ये तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि अनुष्का इतनी बेरुखी से उसे ठुकरा कर चली जाएगी आखिर उसके प्यार में क्या कमी रह गयी थी ? अनुष्का अब एक प्रोफेसर बन चुकी थी क्या यही वजह थी ? या गौतम का कलर्क होना अब उसे अखरने लगा था आखिर अनुष्का ने ऐसा क्यों किया ? ये सब सवाल एक बड़ी पहेली बन गए थे गौतम के लिए | वो झट से उठा और टेबल पर पड़ी डायरी के बीच रखे उस अनुष्का के खत को अपने कांपते हाथों से निकाला और इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक बार फिर पढ़ने लगा वो जानता था कि जब से उसे  अनुष्का का खत उसे मिला है वो कितनी बार उसे पढ़ चुका है ..
करीब एक महीना पहले उस दिन गौतम यूनिवर्सिटी से लौटा ही था कि लैटरबॉक्स में खत मिला , ना जाने किसका था समझ नहीं पा रहा था वो अंदर आकर आराम कुर्सी पर बैठ गया थोड़ा सुस्ताने लगा फिर उस खत को खोला तो सबसे ऊपर अपना नाम पढ़ा, फिर ..क्या था धीरे धीरे उसे उसकी जिंदगी उससे दूर जाती दिखी ,जैसे जैसे वो उस खत को पढ़ रहा था उसे सब कुछ ख़त्म होता दिखाई दे रहा था...
प्रिय गौतम 
मैं इस खत को लिखने के लिए बहुत मजबूर हूं मैं जानती हूं इसे पढ़ कर तुम्हें बेहद दुःख होगा मुझे इसके लिए माफ़ कर देना मगर मुझे ये लिखना बेहद जरुरी लग रहा है , समय रहते ही मैं आपको सारी बातें कहना चाहती हूं मैं नहीं चाहती कि बाद में हम दोनों को कोई पछतावा महसूस हो | गौतम हमारी शादी को सात साल हो गए और एक दूसरे को समझने के लिए ये काफी होते हैं , मैं जानती हूं आप मुझे अच्छे से समझते हैं इसलिए इस खत में लिखी मेरी हर बात को आप समझोगे, मैं क्या सोचती हूं उसको भी | गौतम जब आप से मेरी शादी हुई तब मैं बेहद छोटी थी सिर्फ अठारह बरस की,उस वक्त मैं कितनी अल्हड और नादान थी आज मुझे लगता है , मैं उस वक्त नहीं जानती थी कि जिंदगी क्या है ,जीना किसे कहते हैं, मैं उस वक्त पढ़ना चाहती थी आगे बढ़ना चाहती थी कि अचानक से आप मेरी जिंदगी में आ गए, आप मुझसे प्यार करते थे इसलिए मुझे भी आप से प्यार हो गया ,मगर मेरा वो प्यार शायद मेरा बचपना था आप ही सोचिये गौतम उस उम्र में तो शायद कोई भी लड़की बहक जाये क्यों कि वो उम्र ही ऐसी होती है | आज मैं परिपक्व अवस्था में हूं जीवन के बारे में खुद के बारे में सोच सकती हूं, मैं अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती हूं जिंदगी को नए आयाम देना चाहती हूं,जीवन में अपने लक्षय को प्राप्त करना चाहती हूं ,इस लिए मैं ज्यादा ना लिखते हुए यही बात स्पष्ट कहना चाहती हूं कि मैं आपसे अलग होना चाहती हूं और कानूनी तौर पर आपसे तलाक लेना चाहती हूं | ये मेरी निजी राय है और इच्छा भी, आशा है आप मेरे इस फैसले का सम्मान करोगे और मुझे समझेंगे | आप अपने जीवन में हमेशा खुश रहिये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ 
अनुष्का   
दोनों के कानूनी तौर पर अलग हो जाने के तक़रीबन साल भर बाद खबर आई कि अनुष्का ने शहर के एक जाने माने उद्योगपति रवीश वर्मा से शादी कर ली और हमेशा के लिए अमेरिका चली गयी ,लेकिन गौतम का कोई पता नहीं था उसको लेकर भी कई तरह की बातें सामने आई ,कोई कहता कि मानसिक संतुलन खो बैठा है ...कोई कहता कि वो अपने गावं वापिस चला गया | 

Wednesday 6 November 2013

एक माँ ...(लघु कथा)








सुषमा सुबह से कुछ खोई खोई थी खुश भी थी कुछ उदास भी...प्यारे बेटे राजू के स्कूल एडमिशन का दिन जो  था ..पिछली रात कितनी देर राजू के पापा को मनाती रही ..हम भी संग जाएगें राजू के स्कूल...अरी तुम क्या करोगी ..अंग्रेजी स्कूल है तुम्हारे लिए काला अक्षर भैंस बराबर ..अपना चूल्हा चौका करो घर संभालो ..रात भर कान में ये शब्द तीर की तरह 
प्रहार करते रहे...कभी इस करवट तो कभी उस करवट ..कितनी मन्नतों के बाद नसीब से राजू की किलकारियां घर में गूंजी थी...सुषमा ने एक एक क्षण राजू को जैसे गले से लगा कर रखा था ...दिन भर उसका ख्याल..उसके खेलने से लेकर उसके सोने तक ..रात को अपनी नींदें खराब कर उसको सुलाती ..लोरी सुनाती...
आज सब अलग सा था...राजू को नहलाते हुए मन पानी में जैसे डूब रहा हो...सब कुछ तो किया...घर बार पति राजू...राजू को जन्म दिया पाला, बड़ा किया नाना दादा बुआ कहना सब सिखाया ..ये गलत है..ये सही..सब कुछ तो ..फिर क्यों आज मैं पराई सी लग रही हूँ..आज मुझे अपने बेटे के साथ.. जो इतनी ख़ुशी का दिन है जिसको मैं महसूस करना चाहती हूँ...नन्हें राजू की उस ख़ुशी को अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ ..क्यों मुझसे उस हक़ को छीना जा रहा है...तभी आवाज कानों में पड़ते ही सुषमा सकपका गयी..राजू की माँ ..जल्दी राजू को तैयार करो ...टाइम पर पहुँच जाऊँगा तो सार काम ठीक ठाक से हो जाएगा ...जी अभी करती हूँ..बस राजू तैयार है...सुषमा राजू को कपडे पहना बाल सवारने लगी..राजू बाहर जाने के लिए बहुत खुश था...तभी अपनी मासूम आँखों को उठा कर बोला...मम्मी तुम चलोगी ...पापा कह रहे थे आज मैं स्कूल जाऊँगा...वहां और भी बच्चे होते हैं...सुषमा से जवाब दिए बना ..आंसू पोंछती रसोई में चली गयी..दोनों का टिफिन बनाने लगी...इतनी भी अनपढ़ नहीं हूँ मैं...बारवीं पास हूँ..आगे नहीं पढ़ पाई...घर के हालातों की वजह से...
टिफिन लेकर बाहर आई तो मन धक से रह गया. .. दोनों दरवाजे पर खड़े थे ...अरे जल्दी लाओ..तुम जाने कौन सी दुनिया में रहती हो...चलो हम चलते हैं...राजू मुड़ मुड़ कर अपनी माँ  को देखता रहा ...पर सुषमा की इतनी हिम्मत थी कि ..वो उस दहलीज को लांघ अपने बच्चे की उगली थाम उसके साथ चल सके .....इतनी नम हो गयी आँखें कि...सब धुंधला सा दिख रहा था ....वो अपने आप को भी कहीं नहीं देख पा रही थी...राजू बाहर की दुनिया में कदम रखने जा रहा था ...रोती बिलखती सिरहाने में मुहं छुपा कर कहने लगी...कौन..हूँ..मैं..एक माँ एक पत्नी या..... एक औरत... 

Tuesday 15 October 2013

ये अंधविश्वास कब तक






हमारा देश ऋषि मुनियों की पावन स्थली रहा है पुरातन काल से लेकर लोगों की प्रगाढ़ आस्था देवी देवताओं से लेकर ऋषि मुनियों संत महात्माओं तक रही है परन्तु आज की परिस्थिति  
चिंताजनक है | आज के युग में जन मानस के अन्दर श्रद्धा के नाम पर एक भयंकर अंधविश्वास का माहौल बनता जा रहा है ,हर शहर गली मोहल्ले में आज किसी न किसी बाबा का साधू का बर्चस्व कायम है | ये अवश्य या संभव है कि लोग अपनी आस्था को किसी के प्रति अवश्य प्रकट करें चाहे वो ईश्वर हो या कोई महात्मा हो या फिर कोई साधू संत ,ये सही है कि सत्संग और प्रवचन से हमें मानसिक शांति मिलती है और अध्यात्मिक शांति मिलती है परन्तु आज के युग में ये सब एक पाखंड धोखा और भक्ति के नाम पर चलने वाला कारोबार बनकर रह गया है ,धर्म के नाम पर अपना हित साधने वाले ऐसे साधू बाबाओं की कोई कमी नहीं है जो समाज की कमजोर नब्ज औरतों और बच्चों को विश्वास में लेकर अपने कृत्यों को अंजाम देते हैं | ये किसी एक बाबा के विषय में नहीं है बल्कि ऐसे हजारों उदाहरण हमारे सामने मौजूद है जहाँ कोई न कोई साधू या संत कुकर्म या लोगों को छलता हुआ पकड़ा जाता है | ये बेहद गंभीर विषय है और एक दुखद पहलु है कि जो संत महात्मा अपनी वाणी के ओज से हमारे हृदय को निर्मल कर सकते हैं लोगों की अगाध ज्ञान पिपासा को शांत कर सकते हैं वही बाबा साधू संत पर किसी दुष्कर्म का संगीन आरोप हो | आस्था और अंधविश्वास के माहौल से ऊपर उठ कर लोगों को ये जानना चाहिए और जानने का पूरा हक़ भी है कि आज के बाबा या संत है क्या ,इन साधू संतो की परिभाषा क्या है इनके जीवन यापन करने का क्या ढंग है ये अपने जीवन में सही में संत है या नहीं | जब भी कोई एक इंसान किसी दुसरे इंसान से ऐसी धार्मिक आस्था लगा बैठता है तो दूसरा इंसान एक भगवान की तरह हो जाता है ऐसे में  उसकी जिम्मेवारी कई गुना बढ़ जाती है यहाँ साधू संतों को सही अर्थ में परिभाषित करना बेहद जरूरी है साधू कौन है बाबा क्या है  | 
जब भी कोई इंसान साधू या संत बनता है तो उसका संसार से अपने घर परिवार से  मोह माया से एक नाता टूट जाता है ,वो सारे ऐशोआराम का परित्याग कर एक दुर्लभ जीवन जीने की और मुक्ति के पथ पर अग्रसर हो जाता है,उसका एक ही लक्ष्य रह जाता है की वो अपना पूरा जीवन सादगी से ईश्वर में लीन होकर बिताये और जनता को ज्ञान, प्रवचन दे और लोगों की अध्यात्मिक ज्ञान पिपासा को शांत करे  | 
सतयुग, त्रेता जैसे युगों में अगर भूले से भी कभी किसी महात्मा साधू के दर्शन हो जाते थे तो लोग धन्य हो उठते थे,इतना तेज उनके चेहरे पर समाहित रहता था | प्राचीन काल में ऋषि मुनियों का वर्चस्व रहा ये ऋषि वो ज्ञानी पंडित थे जिन्होंने संसार का मोह माया का त्याग दिया और ईश्वर की खोज में एक परम सत्य की  खोज में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया,  हिमालय की कंदराओं में बैठ हजारों साल तपस्या की जिनका इस भौतिक संसार से कोई वास्ता नहीं था | हमारे वेद पुराण प्राचीन ग्रन्थ इन्ही ऋषि मुनियों  की देन है आज भी हम उन ग्रंथों को इश्वर का सन्देश मान पूजते हैं हमारे वेदों में इतना दुर्लभ ज्ञान है की विज्ञान भी उसके सामने कुछ नहीं है इन ऋषियों ने अपने तपों से ऐसी अपार शक्तियों को हासिल किया था कि ये अदृश्य हो जाते थे और किसी अन्य जगह दृश्यमान होते थे, पल भर में अन्तर्धान हो जाना कुछ ही क्षणों में ब्रहमांड की दूरी तय करना इतियादी, ये तपस्या कोई साधारण तपस्या नहीं होती थी बल्कि एक ऐसी कठोर तपस्या जो बिना अन्न जल को ग्रहण किये हजारों सालों तक चलती थी तब जाकर ऐसे ज्ञान की या दिव्य शक्ति की प्राप्ति संभव थी  | उस समय के ऋषियों ने कभी भी अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि अपने अन्दर छुपे ज्ञान को सदगति देते थे ,यहाँ तक की राजा भी राज्य पर आयी भारी विपदा के समय राज्य सम्बन्धी सलाह लेने के लिए किसी न किसी ऋषि महात्मा का आश्रय लेते थे | 
   वेदों में लिखे साधू संतों के लिए वैधानिक नियमों के अंतर्गत मोह माया से परे जीवन जीना पड़ता है जबकि आज ऐसा नहीं है साधू महात्माओं आज का ये रूप बहुत कुछ सोचने को विवश करता है ,न ही आज का संत एक कठोर जीवन जीने को दृढ हैं बल्कि भक्ति के नाम पर खुद को भगवान बनाने की कोशिश की जाती है , लोगों की श्रद्धा और आस्था को विलासिता के पावं तले कुचला जा रहा है | आज का साधू या बाबा लोगों के बीच राजा की तरह रहता है ,हजारों सेवादार नौकर आगे पीछे घूमते हैं अंगरक्षकों की फ़ौज खड़ी रहती है ,आज के बाबा कितनी जमीनों पर कब्ज़ा जमा करोड़ों की संपत्ति के मालिक बने बैठे हैं ,दर्शनों के लिए लोगों की इतनी भीड़ तो शायद किसी मंदिर में भी देखने को नहीं मिलती है | भक्ति के नाम पर कुकृत्यों और दुष्कर्मों का एक अजीब  मिश्रण पिछले कुछ सालों में देखने को मिला है , कृष्ण प्र्बचन या गीताज्ञान के मध्य न जाने किस अबोध या मासूम पर वो शैतान नजर पर जाये कि अपनी हवस और कामना की आग को बुझाने हेतु एकांत वास का बहाना बना ऐसे घनघोर गंदे कृत्यों पाप दुष्कर्मों को अंजाम दिया जाता है | भक्ति के नाम पर छलावा करने वाली बाबाओं की बेहद डरावनी तसवीर उभर कर आ रही है ,जो स्वयं को ईश्वर बता कर जाने कितने लोगों की श्रद्धा का अपमान कर रहें हैं एक अंधविश्वास का वातावरण तैयार कर रहे हैं |
लोगों में इस प्रकार के अंधविश्वास और आस्था को लेकर जागरूकता बेहद जरूरी है कि वो ये समझे कोई मनुष्य ईश्वर का वो दर्ज प्राप्त नहीं कर सकता जो स्वयं ईश्वर का है  क्यों कि मनुष्य के अन्दर अच्छाई के साथ साथ कितनी बुराइयां और कमजोरियां हैं ,वो भी अन्य जीवों की तरह एक प्राणी है जो जन्म लेता है और समय के काल चक्र से ग्रसित हो मृत्यु को प्राप्त होता है | ईश्वर एक ही है जिसने इस ब्रहमांड का निर्माण किया इस सृष्टि की रचना की प्रकृति जीव जंतुओं और मनुष्य को बनाया , ईश्वर सभी के दिलों में वास करता है उसे अपने अन्दर ढूंढें अपने अच्छे कर्मों में खोजे फिर कहीं अन्यत्र जाने कि आवश्यकता नहीं होगी |  


Saturday 20 July 2013

बच्चे हमारी धरोहर



आज समाज की दुर्दशा को देख बहुत अफ़सोस होता है अपराध इस कदर तेजी से फैल रहा है, कि ऐसा कोई भी दिन नहीं होता हैं कि जब अखबार में इस तरह कि कोई खबर न छपी हो, चाहे वो बलात्कार हो लूटपाट हो या हत्या कि खबर हो | ये बेहद दर्दनाक पहलु है कि हमारे देश के ज्यादातर नौजवान युवावर्ग इस अपराधिक प्रवृति का शिकार हो रहा है चाहे फिर वो निम्न वर्ग हो माध्यम वर्ग हो या ऐशोआराम कि जिंदगी जीने वाला बड़े लोगो का वर्ग हो, अपराध ने हर जगह अपने पैर पसार रखे है | अखबारों और न्यूज चैनल्स के माध्यम से हम रोज ही ऐसी घटनाओं से रूबरू होते हैं ,खूब हंगामा होता है, मोमबतियां जला कर लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं फिर कुछ दिन गुजरने के बाद सब शांत हो जाता है | उस अपराधी को सजा मिले या न मिले पर एक बात यहाँ गौर करने वाली ये है जो भी घटनाएँ प्रकाश में आती हैं या लाई जाती हैं उनसे अपराधियों के हौसले और बुलंद होते हैं फिर कहीं और जगह किसी और घटना को अंजाम दिया जाता है | जाहिर है कि कानून प्रक्रिया का सुस्त होना, गुनाहगार को सजा न मिल पाना या जमानत पर उसका छूट जाना कितने ही कारण हो सकते हैं इस तरह से बढ़ते अपराध के | ये बात यहाँ समझने वाली है कि जो व्यक्ति अपने जिंदगी में पहली बार अपराध करता है वो हम में से ही है वो इस समाज से ही आता है ,परन्तु मानसिक तौर पर वो इस कदर बीमार होता है कि अपराध करने में उसे किसी भी तरह का या कोई भी संकोच नहीं होता है | आखिर हमारी नयी पीढ़ी या युबा वर्ग किस तरफ जा रहा है | जिस जहरीले पेड़ को आप नष्ट करना चाहते हो अगर आप उसकी सिर्फ शाखाएं काटते रहोगे तो कोई लाभ नहीं होगा क्योकि शाखाएं तो फिर से उग आती हैं | उसी तरह से सिर्फ दो चार अपराधियों को सजा देने से समाज में बेख़ौफ़ बढ़ते अपराध को कम नहीं किया जा सकता है जब तक के हम जड़ में पहुँच कर उस अपराध के पेड़ को जड़ समेत उखाड़ नहीं फेंकते |यह सोचना बेहद जरूरी है कि पन्द्रह साल के उपर के बच्चों में ये अपराधिक भावना क्यों जनम लेने लगती है और वो क्यों अपराध के इस दलदल कि और क्यों खिचे चले जाते हैं |अगर हम कोशिश करें तो हम इस युवा वर्ग को अपराध कि तरफ बढ़ने से रोक सकते हैं,ये हमारी धरोहर हैं | ये जिम्मेदारी हर माँ बाप की है की अपने बच्चों को सही शिक्षा दे सही वातावरण और स्वस्थ माहौल में बच्चों की परवरिश करें
           
आइये जानते हैं कुछ ऐसी बातों को जो हम अपने बच्चों को सिखा सकते हैं और उनका भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं :-


 1. बच्चों में धार्मिक भावना का विकास करें:

जब बच्चा स्कूल जाने लगे तो ये समझ जाना चाहिए की उसे अच्छे और बुरे का ज्ञान हो रहा है ,उसे बताएं ईश्वर क्या है, कौन है ,कभी कभार मंदिर ले जाएँ हमारे समाज के अंदर बहुत से लोग ये मानते हैं की छोटे बच्चों को पूजा पाठ क्या सिखाना,उनके  हंसने खेलने की उमर है इत्यादि कितनी तरह की बातें होती हैं परन्तु हर माता पिता को ये जानना आवश्यक है की कच्ची उमर में ही संस्कारों के बीज बोये जा सकते हैं | अगर आपका बच्चा पूजा पाठ करता है तो उसमे ईश्वर के प्रति एक भाव उत्पन्न होता है ,की इस संसार को चलाने वाला ईश्वर है अगर वो कोई भी गलत काम करेगा तो ईश्वर सजा देगा |
२. बच्चों को वेद मंत्रो की शिक्षा दें:

अक्सर इस दौड़ती भागती दुनियां में हम अपने पौराणिक वेद पुरानो और ग्रंथों से दूर हो चुके हैं न ही हम आगे की आने वाली पीढ़ियों को इसकी शिक्षा दे पा रहे हैं , हमारे वेदों में जो मंत्र हैं उनमे गूढ़ रहस्य छिपे होने के साथ साथ चमत्कारिक शक्तियां भी मौजूद है  वेदों में बहुत सुंदर बातें लिखी गयी हैं हम उन्हें अपने बच्चों को बताएं | वैदिक मन्त्रों को भी हम अपने बच्चों को सिखा सकते हैं |
३. बच्चों को नैतिकता का पाठ पढाएं:

नैतिक शिक्षा, सैधान्तिक मुल्य और आदर्श जीवन के कुछ जरुरी अंग हैं
क्या सही है क्या गलत ये बच्चों को जरूर बताएं बड़ों का आदर करें ,छोटों से स्नेह करें गुरु के प्रति विनम्र बने ,घर पर कोई अतिथि आए तो शांत भाव से रहें उनसे आदरपूर्वक बात करें |
४. सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाएँ :

सत्य से बड़ी ताकत नहीं है ,बच्चों को सिखाएं सदा सत्य बोलें और सत्य का साथ दें | हमारे साथ इस दुनियां में मौजूद हर जीव को दया की दृष्टि से देखें
अहिंसा के मार्ग पर चलने को कहें, आस पास रह रहे जानवरों पक्षियों को तंग न करें उन्हें ये सिखाएं |
५. ईमानदारी का
 गुण बताएं:
जिस तरह कुम्हार चिकनी मिटटी को अपने अनुरूप आकार देकर एक घड़ा तैयार करता है ठीक वैसे ही बच्चे होते हैं बेहद कोमल मासूम, अच्छी आदतों का बीज कच्ची उमर में ही बोया जा सकता है  उन्हें कुछ अच्छी बातें सिखाएं
जैसे इमानदारी, आज भ्रष्टाचार की दुनियां में ये एक बहुत अजीब चीज लगती है ईमानदारी अपने आप में एक गुण हैं, इसके गुणों को बच्चों के सामने उजागर करें |
६. बच्चों को को कला के क्षेत्र की तरफ अग्रसर करें :

माँ बाप बच्चे के बारे में सब कुछ जानते हैं पढाई के आलावा ये जानने की कोशिश करें की बच्चे को क्या अच्छा लगता है | उससे ये बात पूछें अगर बच्चे का मन संगीत पेटिंग या डांस में हैं तो उसे रोकें नहीं बल्कि उसके सहायक बने, कला संगीत एक ऐसी चीज है जो बच्चों को बुराई से दूर ले जाती है |
७. खेल कूद की तरफ उनके कदम बढ़ाएं :

 खाली समय में या छुट्टियों में बच्चों को किसी भी खेल को दिनचर्या में शामिल करने को कहें हाकी फूटबाल इतियादी कुछ भी | इससे बच्चों को खाली समय नहीं मिलेगा और खेल बच्चों में अनुसाशनभी लाता है | इससे मन और शरीर दोनों तंदरुस्त रहेगे |
८. अपने बच्चों को टी. वी  इन्टरनेट से दूर रखें :

अक्सर आजकल बच्चे बाहर खेलने के बजाये घर में ही टी.वी या इन्टरनेट पर खुश रहते हैं | आज कल टी.वी बच्चों के देखने के लिए नहीं रह गया है और इन्टरनेट पर तो अश्लील सामग्री व्यंजनों की तरह परोसी जा रही है ,बच्चों को इससे दूर रखें | बच्चों को होमवर्क के बाद थोड़ी देर बाहर मैदान में खेलने भेजें |
   

 

Monday 3 June 2013

ना करें मांस + आहार =मांसाहार


मनुष्य को  इस धरती पर सबसे उत्कृष्ट और सबसे श्रेष्ठ प्राणी माना गया है या यूँ कहें इश्वेर ने हमें अपना स्वरूप  प्रदान किया है, सभी जानवरों और पशु पक्षियों से ज्यादा गुणवान बनाया है वाबजूद इसके की हममें अच्छे और  बुरे को समझने की शक्ति है, हम पाप वृति में उतने ही ज्यादा लिप्त नजर आतें हैं  |
 इसमें  एक पाप है किसी जीव को मार कर अपनी जीभ की लालसा को तृप्त कर अपना पेट भरना यानि मांसाहार करना | "जीव हत्या पाप है" ये शब्द अब सिर्फ किताबों में ही पढने को मिलते हैं आज आधी से ज्यादा दुनिया  खाने में मांस का प्रयोग करती है  मांसाहार हमेशा  दुनिया  के लिए बहस का मुद्दा रहा है में  यहाँ पर इसलिए नहीं लिख रहे की इस पर कोई बहस छेड़ी जाए बस कोशिश यही है इस मांसाहार शब्द का मतलव साफ़ कर सकूं|  हमारे हिन्दू धर्म  में दो तरह का आहार माना गया है सात्विक और तामसिक आहार सात्विक आहार में सत्व गुण होते है जिसमें  शाक माने साग्सब्जी, फूल, फल, कंदमूल, हमारी बनस्पतियां शामिल हैं ये देवताओं, योगी, ऋषियों  का आहार है, जबकि तामसिक आहार में तमो गुण पाए जाते हैं इसमें  मांस ,मछली, रक्त मदिरापान इत्यादि शामिल हैं ये राक्षसों, चांडालों और धूर्त  व्यक्तियों  का आहार माना गया है इसी लिए कहा गया है जैसा आहार, वैसा मन और जैसा मन वैसी प्रवृति |
मांसाहारी के शब्द मात्र के उच्चारण से स्पष्ट होता है मांस का आहार करने वाले ,ये  आज की बात नहीं है मांस खाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है आदिम युग की सभ्यता में भी ये माना जाता है की इंसान ने सबसे पहले जानवरों का शिकार कर  मांस का भक्षण करना शुरू किया इस संदर्भ में हम यहाँ एक बात कहना चाहेगें तब मनुष्य पूर्ण विकसित नहीं था उसमे अच्छे बुरे की समझ नहीं थी दूसरे उस वक्त शिकार करने के अलावा जीवित रहने के लिए अन्य कोई विकल्प भी मौजूद  नहीं था, उस वक्त उसने जो सही समझा वो किया पर आज स्थिति वो नहीं है इश्वेर ने प्रकृति के साथ मिल कर आहार स्वरुप हमें ढेरों विकल्प प्रदान किये हैं आज इंसानी सभ्यता अपनी चरम सीमा पर है ,इंसान का सभ्य होना इस बात की पहचान है की इंसान गलत सही का निर्णय अपनी सोच को आगे रखते हुए कर सकता है अगर नहीं तो इस बात को समझिये समय के बदलाव के साथ वो ही  बदलता गया बल्कि और सभ्य हो गया, यही बदलाव जानवरों जैसे शेर भालू चीते में भी देखने को मिल सकता था शेर आज भी वही है जो हजारों साल पहले था |
लोग इस बात पर भी बहस करते है कि हमारे वेदों में मांस खाने को वर्जित नहीं माना गया है  लोग ऐतरेय उपनिषद और मनुस्मृति कि बात करते हैं पहले के यज्ञो मे पशुओं कि बलि दी जाती थी जिसे मंत्रो द्वारा शुद्ध किया जाता था उस मांस को ब्राह्मण ग्रहण करते थे पर बाद में ब्राह्मणों ने खुद को सही और उच्च कोटि का दिखने के लिए मांस का त्याग किया |
ये बातें मूल रूप से मनुस्मृति या किसी उपनिषद कि नहीं हैं बल्कि इसमें स्वार्थ वश कुछ ऐसी बातें मध्यकाल के दौरान जोड़ी गयी जो गलत हैं | वेद हमारे हिन्दू धर्म का आधार हैं और कोई भी धर्म चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम इसाई हो या जैन धर्म किसी भी धर्म में ये नहीं लिखा गया है या कहा गया है कि आप किसी भी निरीह जीव प्राणी का वध कर के उसे अपना आहार बनाओ |
क्षत्रियों में ये एक महज धारणा है  माना जाता है कि अगर राजा शिकार ना करे या उनके वशज जो अपने आपको राजपूत कहते हैं मांस ना खाएं तबतक वीरता का परिचय नहीं मिलता और ये भी कहा जाता है कि मांस में ज्यादा ताकत होती है,  इसे खाने वाला ज्यादा शक्तिशाली होता है  अगर ऐसा है तो ये बताएं कि शेर ज्यादा ताकतवर है या हाथी |इस मामले में तो शेर को ही ज्यादा ताकतवर होना चाहिए जब कि ऐसा नहीं है और हाथी का आहार केवल फल और घास है | यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि हमें शेर से डर लगता है इस लिए नहीं कि वो ज्यादा ताकतवर  है बल्कि इसलिए कि उसकी प्रवृति खूंखार है ,भयभीत करने वाली है, हिंसक है  यहीं  से मांस को अपना आहार बनाने का सही अर्थ निकलता है हम जैसा आहार ग्रहण करेगे हमारा मन हमारी प्रवृति को दर्शायेगा |
इस संसार कि रचना कितनी सुंदर कि गयी है हमारे साथ साथ हजारों जीवों पशुपक्षियों कि प्रजातियाँ इस धरती पर मौजूद हैं  हर एक  जीव एवं प्राणी को इश्वेर के  द्वारा रचा गया है इसलिए खासकर अपने लिए किसी जीव को कष्ट पहुचाना पाप है  |जान वही ले सकता है जो जीवन दे सकता है , अर्थात अगर आप किसी को बदले में जीवन दे सकते हो तभी आप को किसी कि जान लेने  का हक है वरना नहीं |
एक और बात कही जाती है कि अगर इसी तरह जानवर भेड़ बकरियां बढ़ते रहे तो धरती का संतुलन बिगड़ जाएगा संतुलन कायम रहे इसलिए मांस खाना निश्चित रूप से ठीक है
यहाँ पर भी में ये कहूगी अगर उपरवाले ने सृष्टि कि रचना कि है तो इसको चलाने का संतुलन कायम करने का विधान भी बनाया ही होगा जब भी संसार में तेजी से पशु पक्षी बढ़ते हैं तो अकाल मृत्यु होती है, जानवरों में बीमारियाँ फैल जाती है जो महामारी का रूप धारण करती हैं , संतुलन कायम करने के लिए तो बड़ा जानवर छोटे जानवर हो खता है  जिस तरह से मांसाहारी जानवरों में शरीर कि बनावट शाकाहारी जानवरों कि तुलना में अलग किसम कि होती है, अगर आप भी मांस खाते हैं तो आप कि बनावट भी वैसी ही होनी चाहिए शेर जैसे पंजे और नुकीले दांत होने चाहिए |
आप मांस खा सकते हैं बशर्ते उसे मार ना गया हो (जब उसे मार जाता है तो उस वक्त उसके चारों और जो भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है उससे उस जानवर के अंदर कुछ रासायनिक बदलाव होते है)  उसे वेदना तड़फ और दर्द ना हो और अगर आप किसी मरे हुए पशु का मांस खाना चाहते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि जब भी आत्मा शरीर छोडती है तो वो शरीर लाश माने मृत हो जाता है ,कुछ ही घंटों में वो सड़ने लगता है, उसमे कीटाणु पनपना शुरू हो जाते है असल में बात ये है कि जब भी कोई प्राणी चाहे मनुष्य हो या पशु का शव सड़ने लगता है तो वो तुच्छ योनियो का जैसे कीड़े मकोड़े चील कौओं का आहार बन जाता है | क्या अब  भी आप मांस खाएगे दोनों ही सूरतों में चाहे मार कर या मरा हुआ ना ही जीव को खाना चाहिए ना ही वो खाने योग्य है
हम अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में यही देखते  हैं ,जब कभी एक छोटा बच्चा पहली बार बकरी को देख कर आपसे सवाल करता है तो उसे उतर  में आप यही कहेगे  कि बकरी दूध देती है इसका दूध उपयोगी होता है ना कि ये कहेगे इसका मांस खाने के काम आता है अगर ये उस नन्हे बच्चे के लिए अच्छाई का सबक है तो आपको भी ये सबक लेना चाहिए कि "जीव हत्या पाप है ",
अब आप कहेगे हमने हत्या नहीं कि कसाई ने काटा है ये बात भी आप बखूबी जानते होगे अर्थशाश्त्र में एक नियम है, मांग और पूर्ति means  डिमांड एंड सप्लाई|