Monday 3 June 2013

ना करें मांस + आहार =मांसाहार


मनुष्य को  इस धरती पर सबसे उत्कृष्ट और सबसे श्रेष्ठ प्राणी माना गया है या यूँ कहें इश्वेर ने हमें अपना स्वरूप  प्रदान किया है, सभी जानवरों और पशु पक्षियों से ज्यादा गुणवान बनाया है वाबजूद इसके की हममें अच्छे और  बुरे को समझने की शक्ति है, हम पाप वृति में उतने ही ज्यादा लिप्त नजर आतें हैं  |
 इसमें  एक पाप है किसी जीव को मार कर अपनी जीभ की लालसा को तृप्त कर अपना पेट भरना यानि मांसाहार करना | "जीव हत्या पाप है" ये शब्द अब सिर्फ किताबों में ही पढने को मिलते हैं आज आधी से ज्यादा दुनिया  खाने में मांस का प्रयोग करती है  मांसाहार हमेशा  दुनिया  के लिए बहस का मुद्दा रहा है में  यहाँ पर इसलिए नहीं लिख रहे की इस पर कोई बहस छेड़ी जाए बस कोशिश यही है इस मांसाहार शब्द का मतलव साफ़ कर सकूं|  हमारे हिन्दू धर्म  में दो तरह का आहार माना गया है सात्विक और तामसिक आहार सात्विक आहार में सत्व गुण होते है जिसमें  शाक माने साग्सब्जी, फूल, फल, कंदमूल, हमारी बनस्पतियां शामिल हैं ये देवताओं, योगी, ऋषियों  का आहार है, जबकि तामसिक आहार में तमो गुण पाए जाते हैं इसमें  मांस ,मछली, रक्त मदिरापान इत्यादि शामिल हैं ये राक्षसों, चांडालों और धूर्त  व्यक्तियों  का आहार माना गया है इसी लिए कहा गया है जैसा आहार, वैसा मन और जैसा मन वैसी प्रवृति |
मांसाहारी के शब्द मात्र के उच्चारण से स्पष्ट होता है मांस का आहार करने वाले ,ये  आज की बात नहीं है मांस खाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है आदिम युग की सभ्यता में भी ये माना जाता है की इंसान ने सबसे पहले जानवरों का शिकार कर  मांस का भक्षण करना शुरू किया इस संदर्भ में हम यहाँ एक बात कहना चाहेगें तब मनुष्य पूर्ण विकसित नहीं था उसमे अच्छे बुरे की समझ नहीं थी दूसरे उस वक्त शिकार करने के अलावा जीवित रहने के लिए अन्य कोई विकल्प भी मौजूद  नहीं था, उस वक्त उसने जो सही समझा वो किया पर आज स्थिति वो नहीं है इश्वेर ने प्रकृति के साथ मिल कर आहार स्वरुप हमें ढेरों विकल्प प्रदान किये हैं आज इंसानी सभ्यता अपनी चरम सीमा पर है ,इंसान का सभ्य होना इस बात की पहचान है की इंसान गलत सही का निर्णय अपनी सोच को आगे रखते हुए कर सकता है अगर नहीं तो इस बात को समझिये समय के बदलाव के साथ वो ही  बदलता गया बल्कि और सभ्य हो गया, यही बदलाव जानवरों जैसे शेर भालू चीते में भी देखने को मिल सकता था शेर आज भी वही है जो हजारों साल पहले था |
लोग इस बात पर भी बहस करते है कि हमारे वेदों में मांस खाने को वर्जित नहीं माना गया है  लोग ऐतरेय उपनिषद और मनुस्मृति कि बात करते हैं पहले के यज्ञो मे पशुओं कि बलि दी जाती थी जिसे मंत्रो द्वारा शुद्ध किया जाता था उस मांस को ब्राह्मण ग्रहण करते थे पर बाद में ब्राह्मणों ने खुद को सही और उच्च कोटि का दिखने के लिए मांस का त्याग किया |
ये बातें मूल रूप से मनुस्मृति या किसी उपनिषद कि नहीं हैं बल्कि इसमें स्वार्थ वश कुछ ऐसी बातें मध्यकाल के दौरान जोड़ी गयी जो गलत हैं | वेद हमारे हिन्दू धर्म का आधार हैं और कोई भी धर्म चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम इसाई हो या जैन धर्म किसी भी धर्म में ये नहीं लिखा गया है या कहा गया है कि आप किसी भी निरीह जीव प्राणी का वध कर के उसे अपना आहार बनाओ |
क्षत्रियों में ये एक महज धारणा है  माना जाता है कि अगर राजा शिकार ना करे या उनके वशज जो अपने आपको राजपूत कहते हैं मांस ना खाएं तबतक वीरता का परिचय नहीं मिलता और ये भी कहा जाता है कि मांस में ज्यादा ताकत होती है,  इसे खाने वाला ज्यादा शक्तिशाली होता है  अगर ऐसा है तो ये बताएं कि शेर ज्यादा ताकतवर है या हाथी |इस मामले में तो शेर को ही ज्यादा ताकतवर होना चाहिए जब कि ऐसा नहीं है और हाथी का आहार केवल फल और घास है | यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि हमें शेर से डर लगता है इस लिए नहीं कि वो ज्यादा ताकतवर  है बल्कि इसलिए कि उसकी प्रवृति खूंखार है ,भयभीत करने वाली है, हिंसक है  यहीं  से मांस को अपना आहार बनाने का सही अर्थ निकलता है हम जैसा आहार ग्रहण करेगे हमारा मन हमारी प्रवृति को दर्शायेगा |
इस संसार कि रचना कितनी सुंदर कि गयी है हमारे साथ साथ हजारों जीवों पशुपक्षियों कि प्रजातियाँ इस धरती पर मौजूद हैं  हर एक  जीव एवं प्राणी को इश्वेर के  द्वारा रचा गया है इसलिए खासकर अपने लिए किसी जीव को कष्ट पहुचाना पाप है  |जान वही ले सकता है जो जीवन दे सकता है , अर्थात अगर आप किसी को बदले में जीवन दे सकते हो तभी आप को किसी कि जान लेने  का हक है वरना नहीं |
एक और बात कही जाती है कि अगर इसी तरह जानवर भेड़ बकरियां बढ़ते रहे तो धरती का संतुलन बिगड़ जाएगा संतुलन कायम रहे इसलिए मांस खाना निश्चित रूप से ठीक है
यहाँ पर भी में ये कहूगी अगर उपरवाले ने सृष्टि कि रचना कि है तो इसको चलाने का संतुलन कायम करने का विधान भी बनाया ही होगा जब भी संसार में तेजी से पशु पक्षी बढ़ते हैं तो अकाल मृत्यु होती है, जानवरों में बीमारियाँ फैल जाती है जो महामारी का रूप धारण करती हैं , संतुलन कायम करने के लिए तो बड़ा जानवर छोटे जानवर हो खता है  जिस तरह से मांसाहारी जानवरों में शरीर कि बनावट शाकाहारी जानवरों कि तुलना में अलग किसम कि होती है, अगर आप भी मांस खाते हैं तो आप कि बनावट भी वैसी ही होनी चाहिए शेर जैसे पंजे और नुकीले दांत होने चाहिए |
आप मांस खा सकते हैं बशर्ते उसे मार ना गया हो (जब उसे मार जाता है तो उस वक्त उसके चारों और जो भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है उससे उस जानवर के अंदर कुछ रासायनिक बदलाव होते है)  उसे वेदना तड़फ और दर्द ना हो और अगर आप किसी मरे हुए पशु का मांस खाना चाहते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि जब भी आत्मा शरीर छोडती है तो वो शरीर लाश माने मृत हो जाता है ,कुछ ही घंटों में वो सड़ने लगता है, उसमे कीटाणु पनपना शुरू हो जाते है असल में बात ये है कि जब भी कोई प्राणी चाहे मनुष्य हो या पशु का शव सड़ने लगता है तो वो तुच्छ योनियो का जैसे कीड़े मकोड़े चील कौओं का आहार बन जाता है | क्या अब  भी आप मांस खाएगे दोनों ही सूरतों में चाहे मार कर या मरा हुआ ना ही जीव को खाना चाहिए ना ही वो खाने योग्य है
हम अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में यही देखते  हैं ,जब कभी एक छोटा बच्चा पहली बार बकरी को देख कर आपसे सवाल करता है तो उसे उतर  में आप यही कहेगे  कि बकरी दूध देती है इसका दूध उपयोगी होता है ना कि ये कहेगे इसका मांस खाने के काम आता है अगर ये उस नन्हे बच्चे के लिए अच्छाई का सबक है तो आपको भी ये सबक लेना चाहिए कि "जीव हत्या पाप है ",
अब आप कहेगे हमने हत्या नहीं कि कसाई ने काटा है ये बात भी आप बखूबी जानते होगे अर्थशाश्त्र में एक नियम है, मांग और पूर्ति means  डिमांड एंड सप्लाई|






2 comments:

  1. अच्छे विषय पर एक अच्छा आलेख। निरामिष ब्लॉग पर भी शाकाहार की दिशा मे काम हो रहा है। समय मिले तो एक नज़र अवश्य डालें। जीवदया और करुणा की भावना मानवता की पहचान है।

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    1. शुक्रिया, लेखन के क्षेत्र में मेरा ये पहला कदम है कोशिश यही रहेगी
      हर कसौटी पर खरा उतर पाऊँ

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